कबीरधाम पुलिस पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप …. FIR से पहले हिरासत, मारपीट, वसूली और RTI पर झूठी एफआईआर?

कबीरधाम – जिले में पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जो न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों के दमन का उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। आरोप है कि इस पूरे घटनाक्रम में कैसे पुलिस कुछ प्रभावशाली लोगों के इशारे पर निर्दोषों को प्रताड़ित करने और झूठे मामलों में फंसाने से भी परहेज नहीं कर रही। मामला शासकीय शिक्षिका सूरसरी उमरे के घर से 35 लाख की नकदी चोरी से जुड़ा है। बताया जा रहा है पुलिस जांच के अनुसार, यह चोरी खुद शिक्षिका के बेटे दिव्यांशु उमरे ने ही की, जिसने कथित रूप से अपने दोस्तों के साथ मिलकर यह रकम खर्च की। लेकिन इसके बावजूद पुलिस ने असली आरोपी पर प्राथमिक कार्रवाई करने की बजाय दिव्यांशु के दो दोस्तों शिवा श्रीवास और ओमप्रकाश साहू को निशाना बनाया। 20 मई 2025 को पुलिस ने इन दोनों युवकों को बिना किसी प्राथमिकी या कानूनी प्रक्रिया के थाने बुलाया और दोपहर 2:30 से देर रात 10 बजे तक थाने में अवैध रूप से बैठाकर न सिर्फ मारपीट की, बल्कि उनसे 31 लाख की वापसी और 2 लाख थाने में देने की जबरन मांग की गई। इससे भी गंभीर बात यह है कि ओमप्रकाश की निजी कार को, जो वैध रूप से खरीदी गई थी, जब्त करने की प्रक्रिया के बिना ही थाने में रख लिया गया और दस्तावेजों के बावजूद उसे चोरी के पैसों से खरीदी गई बताकर दंडित किया गया।

घटना के बाद, पीड़ितों ने 31 मई व 1 जून को मुख्यमंत्री, डीजीपी, आईजी और एसपी को विस्तृत शिकायतें भेजीं। इसमें मारपीट, अवैध हिरासत, धमकी और संपत्ति की जब्ती के आरोप लगाए गए। साथ ही सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत थाने की CCTV फुटेज मांगे गए, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि 20 मई को थाने में क्या हुआ था। लेकिन पुलिस ने शिकायतों और RTI आवेदन से बौखलाकर 5 जून को उल्टा शिवा और ओमप्रकाश के खिलाफ ही झूठी FIR दर्ज कर दी। 

गंभीर आरोपों से घिरी कबीरधाम पुलिस न केवल अपने ऊपर लगे आरोपों से बचने की कोशिश कर रही है, बल्कि शिकायतकर्ताओं को सबक सिखाने की नीयत से झूठे मामलों में फंसा रही है। यह मामला इस बात की भी गंभीर जांच की मांग करता है कि 35 लाख की भारी-भरकम नकदी एक सरकारी शिक्षिका के घर में कैसे मौजूद थी? क्या यह पूरी राशि वैध है? और यदि भूमि बिक्री से अर्जित की गई थी तो उसका पूरा विवरण कहां है? पुलिस ने शिक्षिका और उसके पुत्र को प्रारंभ में क्यों संरक्षण दिया और दोस्तों पर ही सारा दोष क्यों मढ़ा? स्थानीय लोगों और पीड़ितों के परिजनों का कहना है कि यदि उच्च अधिकारियों द्वारा तत्काल निष्पक्ष जांच नहीं कराई गई और मारपीट व फर्जी FIR करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई नहीं की गई, तो वे कानूनी लड़ाई के साथ-साथ लोकतांत्रिक आंदोलन की राह भी अपनाएंगे। यह प्रकरण छत्तीसगढ़ पुलिस के आचरण पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है और यह दर्शाता है कि यदि शिकायतकर्ता ही आरोपी बना दिए जाएं और असली अपराधियों को बचाया जाए, तो आम जनता न्याय की उम्मीद किससे करे? कबीरधाम पुलिस की यह कार्रवाई निश्चित ही उच्चस्तरीय जांच और जवाबदेही की मांग करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *